हूल क्रांति दिवस 2025: आदिवासी विद्रोह की अमर गाथा30 जून 2025 को देश भर में हूल क्रांति दिवस मनाया जा रहा है, जो संताल आदिवासी समुदाय के ऐतिहासिक विद्रोह की याद दिलाता है। यह दिन 170 साल पहले, 1855 में शुरू हुए संताल हूल को चिह्नित करता है, जिसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी माना जाता है। सिदो और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में, इस क्रांति ने ब्रिटिश शासन और स्थानीय जमींदारों के शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की थी।
हूल क्रांति का ऐतिहासिक महत्व
वह1855 में संताल परगना के भोगनाडीह में सिदो-कान्हू ने अपने भाइयों चांद-भैरव और बहनों फूलो-झानो के साथ मिलकर अंग्रेजों और साहूकारों के अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया। इस क्रांति का नारा था “अंग्रेजों भारत छोड़ो,” जो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से भी पहले गूंजा। हजारों आदिवासियों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया, जो जमीन की लूट, कर वसूली, और दमन के खिलाफ एकजुट होकर लड़ा गया।
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वीरांगनाओं की भूमिका
फूलो और झानो जैसी वीरांगनाओं ने इस क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी वीरता की कहानियां आज भी प्रेरणा देती हैं, जो न केवल पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ीं, बल्कि अपने नेतृत्व से क्रांति को नई दिशा दी।
आज के समय में प्रासंगिकता
हूल क्रांति न केवल ऐतिहासिक घटना है, बल्कि यह शोषण और अन्याय के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक भी है। आज भी यह दिन आदिवासी समुदायों के स्वाभिमान और उनकी सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देता है। विभिन्न संगठन और समुदाय इस दिन को रैलियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, और शैक्षिक आयोजनों के माध्यम से मनाते हैं।
समारोह और आयोजन
इस वर्ष, झारखंड के साहिबगंज और भोगनाडीह में हूल क्रांति दिवस के अवसर पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। स्थानीय लोग और संगठन क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए स्मारक स्थलों पर एकत्रित हो रहे हैं। स्कूलों और कॉलेजों में इस दिन के महत्व को समझाने के लिए विशेष व्याख्यान और प्रदर्शनियां भी आयोजित की जा रही हैं।हूल क्रांति दिवस हमें यह सिखाता है कि एकता और साहस के साथ अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना हर युग में जरूरी है। यह दिन हर भारतीय को अपने इतिहास पर गर्व करने और भविष्य में समानता के लिए लड़ने की प्रेरणा देता है।